सत्साहित्य सदा कवि लिखता, चाटुकारिता
नहीं धर्म है,
वह उपदेशक है समाज का, सच में उसका यही
कर्म है l
परिवर्तन लाना समाज
में, स्वाभाविक बाधाएँ आयें,
कार्य कुशलता के ही कारण, सम्मानित है,
यही मर्म है l
आदि काल से बहता आया, नहीं रुका नदियों का
पानी,
सदा सत्य का मार्ग प्रदर्शन, करती है
मुनियों की वाणी |
कवि भी नई दिशा देता है, सदा राष्ट्र
जाग्रत करने में,
उसका हृदय बहुत कोमल है, इसीलिए जग में सम्मानी
|
केवल
मनोरंजन नहीं कवि धर्म है,
साहित्य
दे कुछ प्रेरणा कवि कर्म है |
कर्तव्य
पथ पर कवि चले, यह सोच ले,
सम्मान
पायेगा सदा यह मर्म है |
वही लेखनी धन्य हो सकी, सार तत्व जिसने
दे डाला,
स्वाभिमान कवि का जिन्दा है, उसने अपने व्रत
को पाला |
सजग देखता और जगाता, वह ही कुछ कह पाता जग से,
बंद कपाट किये बैठे जो, उनका
भी खुल जाता ताला |
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