Saturday, 25 September 2021

मुक्तक

 

सत्साहित्य सदा कवि लिखता, चाटुकारिता नहीं धर्म है,

वह उपदेशक है समाज का, सच में उसका यही कर्म है l

परिवर्तन लाना  समाज  में, स्वाभाविक बाधाएँ  आयें,

कार्य कुशलता के ही कारण, सम्मानित है, यही मर्म है l

        आदि काल से बहता आया, नहीं रुका नदियों का पानी,

        सदा सत्य का मार्ग प्रदर्शन, करती है मुनियों की वाणी |

       कवि भी नई दिशा देता है, सदा राष्ट्र जाग्रत करने में,

       उसका हृदय बहुत कोमल है, इसीलिए जग में सम्मानी |

केवल मनोरंजन नहीं कवि धर्म है,

साहित्य दे कुछ प्रेरणा कवि कर्म है |

कर्तव्य पथ पर कवि चले, यह सोच ले,

सम्मान पायेगा सदा यह मर्म है |

 

   वही लेखनी धन्य हो सकी, सार तत्व  जिसने  दे  डाला,

   स्वाभिमान कवि का जिन्दा है, उसने अपने व्रत को पाला |

   सजग देखता और जगाता, वह ही कुछ कह पाता जग से,

   बंद कपाट किये  बैठे जो, उनका  भी  खुल जाता ताला |

 

 

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