Friday, 3 February 2017

सभी मूर्तियाँ मिटटी निर्मित या केवल पाषण हैं


भोपाल से प्रकाशित ‘साक्षात्कार’ के नवम्बर अंक में प्रकाशित गीत आपके बीच साझा कर रहा हूँ -- 


सभी मूर्तियाँ मिटटी निर्मित या केवल पाषण हैं,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l

           आदि काल से ही मानव ने किया स्रजन है,
           छैनी और हतोड़ी का ही किया चयन है l

           जाने कितनी प्रतिमाएं गढ़ गढ़ कर छोड़ी,
           लेकिन कुछ में श्रद्धा मान किया अर्पण है l

प्राण प्रतिष्ठा हुई तभी तो, वे जग में पहिचान हैं ,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l

           द्रष्टि हमारी समुचित हो बस यही मानना,
           मन पवित्र हो, बीएस वैसी ही बने भावना l

           शीष झुकाया हर पत्थर शिव शंकर जैसा.
           मन में ही विश्वास जगा, तब बनी धारणा l

घन्टे, घडियाले जब बजते, पाते तब सम्मान हैं,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l

           मन्त्र जगाया हमने ही तो जन मानस में,
           श्रद्धा औ विश्वास जगाया है साहस में l

           निष्ठा और लगन ने ही जब साथ दे दिया,
           उन्हें बनाना सचमुच में अपने ही वश में l

ऊँचे आसन पर बैठाया, तब वे हुए महान हैं,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l

           जिनको हमने पूजा वह आराध्य हो गया,
           साधन से जो मिला, वही तो साध्य हो गया l

           रोली,चन्दन, अक्षत या नैवेद्य चढाया ,
           मिली भावना, वर देने को वाध्य हो गयाl

हमने पूजा, सबने पूजा, अब देते वरदान हैं,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l


-- डॉ. हरिमोहन गुप्त
  

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