भोपाल से प्रकाशित ‘साक्षात्कार’ के नवम्बर अंक में प्रकाशित गीत आपके बीच साझा कर रहा हूँ --
सभी मूर्तियाँ मिटटी
निर्मित या केवल पाषण हैं,
मात्र भावना है यह
मन की, इसीलिए भगवान हैं l
आदि काल से ही मानव ने किया स्रजन है,
छैनी और हतोड़ी का ही किया चयन है l
जाने कितनी प्रतिमाएं गढ़ गढ़ कर छोड़ी,
लेकिन कुछ में श्रद्धा मान किया अर्पण
है l
प्राण प्रतिष्ठा हुई
तभी तो, वे जग में पहिचान हैं ,
मात्र भावना है यह
मन की, इसीलिए भगवान हैं l
द्रष्टि हमारी समुचित हो बस यही
मानना,
मन पवित्र हो, बीएस वैसी ही बने भावना
l
शीष झुकाया हर पत्थर शिव शंकर जैसा.
मन में ही विश्वास जगा, तब बनी धारणा
l
घन्टे, घडियाले जब
बजते, पाते तब सम्मान हैं,
मात्र भावना है यह
मन की, इसीलिए भगवान हैं l
मन्त्र जगाया हमने ही तो जन मानस में,
श्रद्धा औ विश्वास जगाया है साहस में
l
निष्ठा और लगन ने ही जब साथ दे दिया,
उन्हें बनाना सचमुच में अपने ही वश
में l
ऊँचे आसन पर बैठाया,
तब वे हुए महान हैं,
मात्र भावना है यह
मन की, इसीलिए भगवान हैं l
जिनको हमने पूजा वह आराध्य हो गया,
साधन से जो मिला, वही तो साध्य हो गया
l
रोली,चन्दन, अक्षत या नैवेद्य चढाया ,
मिली भावना, वर देने को वाध्य हो गयाl
हमने पूजा, सबने पूजा,
अब देते वरदान हैं,
मात्र भावना है यह
मन की, इसीलिए भगवान हैं l
-- डॉ. हरिमोहन गुप्त
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