फल देतें हैं सदा सभी को, वृक्ष नहीं कुछ खाते,
धरती को सिंचित करते ही,बादल फिर उड़ जाते,
प्यास बुझाती प्यासे की ही,सरिता कब जल पीती,
पर उपकारी जो रहते हैं, धन्य वही हो पाते ,,,,,
डॉ, हरिमोहन गुप्त
धरती को सिंचित करते ही,बादल फिर उड़ जाते,
प्यास बुझाती प्यासे की ही,सरिता कब जल पीती,
पर उपकारी जो रहते हैं, धन्य वही हो पाते ,,,,,
डॉ, हरिमोहन गुप्त
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