भारत रत्न स्मृति शेष श्री अटल बिहारी बाजपेई
श्रृद्धांजलि
ओ महान कवि,युग द्रष्टा,ओजस्वी वक्ता,
जो जीवन में, सदा नये रंगों को भरता.
नई दिशा
दी भारत को, आगे बढ़ने की,
ओ दधीच! तुम जैसा कोन य्हन्हो सकता?
मौत खड़ी हो जहाँ सामने उसको भी ललकारा,
रुक जाओ “स्वाधीन दिवस” भारत का प्यारा.
कल चल सकता, विजय “काल के कपाल”पर है,
ओ नायक ! अब बोझ उतारा तन का
सारा.
साहस इतना
अडिग, हिमालय से भी
ऊपर,
तुम गम्भीर कि सागर स्वयम सिमिटता भीतर.
पथ संचालक ! तुमने अपनी राह बनाई,
ओ सर्वोत्तम !
नई
चेतना, नई दिशा
दी आगे बढ़ कर.
सभी जानते जो भी आया गया यहाँ से,
राम, कृष्ण भी देश छोड़ कर गये जहाँ से.
उसी लीक पर तुमने भी चल कर दिखलाया,
ओ शुभ चिन्तक ! तुम भी रहते यहाँ कहाँ से.
“मैं जी भर जिया,लौट कर आऊंगा यह वादा,
वाक्य
प्रेरणा श्रोत, बात सीधी
है सादा.
“प्यादे से
बन कर वजीर” यह ही दिखलाया,
मन
में हो विशवास और हो नेक
इरादा.
लेकिन तुमने जाते जाते यह दिखलाया,
भारत अब सिरमोर जहाँ में ऐसा पाया.
उत्तराधिकार दे करके जिसको भार दिया
है,
राह आपकी चल कर जिसने गौरव पाया.
आओगे तुम नये रूप में, यह मन कहता,
इस पीढ़ी में आज यही तो सपना पलता.
देखोगे तुम
नये रूप में इस भारत को,
ऐसा द्रढ़ विश्वास बनोगे
कर्ता धरता.
गीतों के माध्यम से जो दी थी
काव्यांजलि,
जाने से अब क्या कह दें ? रीती है अन्जलि.
नये ढंग से अब गीतों
को लिखना होगा,
भारत रत्न “अटल” तुमको सच्ची श्रृद्धांजलि .
कैसे मानूँ
कभी अटल जी मर सकते हैं,
उनके जो सिध्दान्त,उन्हीं पर यदि चलते हैं.
तो मानो यह सत्य, अटल जी नहीं मरेगें,
पद चिन्हों में, शीश आज सबके झुकते हैं.
डा० हरिमोहन गुप्त
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