लघु कथा
राकेश मल्टी नेशनल
कम्पनी में एक्ज्युकेटिव हेड था, बड़ी कम्पनियों में काम का बोझ तो अधिक होता है,
घर पर 8 साल के अपने लाडले अंकुर को कम ही समय दे पाता था | वह कई बार चिड़िया घर
दिखाने के लिये कह चुका था, इस रविवार को उसने फिर कहा तो राकेश उसका आग्रह न टाल
सका, उसने दिव्या (पत्नी) से कहा तो उसने यह कह कर मना कर दिया कि आज मेहरी नहीं
आयेगी, घर की साफ सफाई मुझे ही करना पड़ेगी, आप ही अंकुर के साथ चले जाइये बहुत
दिनों से कह रहा है, उसकी इच्छा पूरी हो जायेगी |
चिड़िया घर में जानवरों, पक्षियों को दिखाते
दिखाते दो घंटे से अधिक हो गये, दोनों थक गये
तो एक बेंच पर बैठ गये, सामने एक सेव बेचने वाला निकला तो राकेश ने अंकुर
से सेव लाने के लिये कहा, अंकुर ने दो सेव खरीदे और वहीं खड़े खड़े दोनों सेव खाने
लगा, राकेश यह देख कर सोचने लगा अरे यह क्या मैं व्यस्त रहता हूँ तो दिव्या को तो
उसे शिष्टाचार, बड़ों के प्रति कर्तव्य आदि सिखाना चाहिए थे, वैसे दिव्या का स्वभाव
ऐसा नहीं है कि उसने अंकुर को यह सब शिक्षा न दी हो, तो क्या जो घर में काम वाली
आती है क्या उसने ऐसा सिखाया, ऐसे ही विचार उसके मस्तिस्क में चल रहे थे कि अंकुर
ने आ कर कहा “पापा जी यह सेव आपके लिये है, यह इस दूसरे सेव से अधिक मीठा है”
मम्मी कहती हैं कि अपनों से बड़ों को अपनी तुलना में अच्छी चीज भेंट करना चाहिए |
राकेश की तन्द्रा टूटी और बोला “बेटा तुम ठीक कहते हो, मैं ही गलत सोच रहा था” ऐसी
ही शिक्षा प्रगति का मार्ग खोलती है, बड़ों के प्रति आदर और सम्मान ही उसे आगे
बढाता है | मुझे तुम पर गर्व है कि तुमने मम्मी की शिक्षा को आत्मसात किया” अब चलो
घर चलें बाकी फिर मम्मी के साथ किसी रविवार को आकर देखेंगे |
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