करें सन्गठन, द्वेष भाव को यहाँ मिटाएँ |
सभी जानते सत्य सदा से जीता जग में,
अंहकार के रावण को हम, यहाँ जलाएं |
आओ हम ऐश्वर्य, शौर्य को यहाँ जगाएं,
अगर चाहते प्रगति, बड़ों से खुद को जोड़ो,
काम आज का आज, नहीं तुम कल पर छोडो |
पूरा जीवन पड़ा हुआ है, कल कर लेंगे,
यही भाव रोड़ा बनता है, इसको मोड़ो |
क्षमा,दया का भाव सहज मानव में आता,
सन्तोषी रह, परोपकार जो भी अपनाता |
पर पीड़ा को समझ सका, जो करे आचरण,
चले सत्य की राह, वही ईश्वर हो जाता |
किसी काम को यदि करना है, तो चाहें पहिले आती हैं,
गोदी में बच्चे को लो तुम, तो बाँहें पहिले आती हैं |
हर कोशिश का दर्जा ऊँचा, सदा कामयाबी से ऊपर,
मंजिल पाते सदा बाद में, राहें तो पहिले आती हैं |
भारत का ही कृषक यहाँ का भाग्य विधाता,
मेहनत,मजदूरी के बल पर, सुख उपजाता l
धूप शीत सह सीमा पर, जवान लड़ता है,
सुख दुख सह कर यहाँ शान्ति को वह बरसाता l
भौतिक विकास की सुविधायें, हमें बनाती सदा विलासी,
हम प्रकाश की ओर बढ़ें यदि,तन्मय हो कर हो अभ्यासी l
अन्धकार तो स्वयं छटेगा, बन जाएँ यदि द्दढ विश्वासी ,
सोपानी क्रम से बढ़ सकते, आत्मशुद्धि के हों अभिलाषी l
माँ देती है जन्म, गुरु जीवन को देता,
कुम्भकार की रही भूमिका, अपना लेता l
इनसे मानो उऋण नहीं कोई हो सकता,
अलग अलग दायित्व निभाता,बने प्रणेता l
हीरे का क्या मूल्य लगायें, जो जैसा होगा वह देगा,
जो कोई पत्थर मानेगा, तो वैसा ही मूल्य लगेगा l
बहुत कठिन हैं मोल लगाना, सब में ज्ञान कहाँ होता है,
कुशल,पारखी और अनुभवी, बस अमूल्य है,यह कह देगा l
बृह्म अनन्त,अचिन्त्य,अगोचर,अदभुत होता,
आत्म चेतना,आत्म निरिक्षण व्यर्थ न खोता l
साधन हैं ये मात्र सतत ही करें साधना,
वह साधक है, अहंकार को जो भी धोता l
नशा करने वाले, स्वयम पहिचान खोते हैं,
नशा करने वाले स्वयम ही शान खोते हैं.
नशा तो बीमारी है,दिल,जिगर,मस्तिष्क की,
नशा करने वाले स्वयम सम्मान खोते है.