होड़ लगी है आज जगत में, कैसे हम आगे आ जाएँ,
कुचल रहे हैं पीड़ित प्राणी, लेकिन वे हमको बहकाएं.
गिरते गिरते जो भी उठते, सच मानो वे आगे बढ़ते,
नहीं आदमी जो अपने हित, बहका कर जग पर छा जायें. |
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