सत्साहित्य सदा कवि लिखता, चाटुकारिता नहीं धर्म है,
वह उपदेशक है समाज का, सच में उसका यही कर्म है l
परिवर्तन लाना समाज में, स्वाभाविक बाधाएँ आयें,
कार्य कुशलता के ही कारण, सम्मानित है, यही मर्म है l
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