भक्त
की साधना से बड़ी
भक्ति है,
सदा
आसक्ति से बढ़ कर विरक्ति है,
व्यक्ति से भी बड़ा उसका व्यक्तित्व है,
शक्ति
से भी बड़ी बस सहनशक्ति है l
अरे मियां शरीफ, बंद
कर दो हंगामा
सारी
दुनियाँ जान गई, हरकते कुनामा,
सावधान हो,चीन साथ अब कब तक देगा,
रहो अकेले, बंद करो अपना
यह ड्रामा
धर्म आचरण का पालन कर, धर्म जिये जा,
अहंकार को छोड़, छिपा यह
मर्म जिए जा.
काम, क्रोध, मद, लोभ, सदा से शत्रु रहे
हैं,
फल की इच्छा क्यों करता, तू कर्म किये जा.
हिन्दी
के मूर्धन्य मन्च पर, सब में ही
अपना दमखम है,
यहाँ विचारक, उपदेशक हैं, इसमें नहीं किसी
को भ्रम हैl
मेरी क्या सामर्थ बैठ लूं, साथ आपके सभा मन्च पर,
मान सहित जो आप बुलाते, मेरे लिये यही
क्या कम है l
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