कवि ही ऐसा प्राणी है जो, गागर में सागर को भरता
केवल वाणी के ही बल पर,
सम्मोहित सारा जग करता,
सीधी, सच्ची, बातें कह कर,
मर्म स्थल को वह छू लेता आकर्षित हो जाते जन जन,
भावों में भरती है दृढ़ता l
केवल वाणी के ही बल पर,
सम्मोहित सारा जग करता,
सीधी, सच्ची, बातें कह कर,
मर्म स्थल को वह छू लेता आकर्षित हो जाते जन जन,
भावों में भरती है दृढ़ता l
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