Dr. Hari Mohan Gupta
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Thursday, 5 July 2018
जितनी कम जिसकी इच्छाएं
जितनी कम जिसकी इच्छायें, उसकी सुखी
रही है काया,
विषय भोग में लिप्त रहा जो, उसने दुख को ही उपजाया
.
सब ग्रन्थों का सार यही है, सुख दुख की यह ही परिभाषा,
तृष्णा, लोभ, मोह को छोड़ो, संतों ने
यह
ही दुहराया.
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