Thursday, 28 August 2025

 

श्रमित समय का अंशदान जिनका है जीवन,

सहभागी  हो कष्टों में, जो  हैं पीड़ित जन l

सब  में  हो  सदभाव, साधना ऐसी करिये,

तभी आपको  हो  सकता  है, ईश्वर  दर्शन l

Wednesday, 27 August 2025

 

जो सेवक  हैं  सही अर्थ में, वे  तो  समझें  खुद को अफसर,

वेतन भोगी  कहें  भले  ही, छोड़ें नहीं  कोई  भी  अवसर l

जनहित के क्या काम करेंगे, सोच समझ जिनकी है लिप्सा,

समय नहीं  जो  दर्द  सुन सकें, ऐसा  ही  होता है अक्सर |

Tuesday, 26 August 2025

 

कर भला, होगा भला, यह बात मुद्दत से पढ़ी,

 अब   बुराई  में  भलाई, ढूढ़ते   सबसे  बड़ी l

केवल भरोसा राम का, यह युक्ति ही बेकार है,

यदि सफलता चाहते तो,फिर करो मेहनत कड़ी l

Saturday, 23 August 2025

 

रहा  उपेक्षित वही वर्ग  ही, जो नेत्रत्व दिया करता है,

अधिकारों के साथ साथ ही, जो कर्तव्य किया करता है l

आज समय ने करवट बदली, पीड़ा और बढ़ा दी मन की,

प्यास बुझाये जो औरों की, वह अपमान पिया करता है l

Friday, 22 August 2025

 

लज्जा,शील,सनेह, यही तो नारी के आभूषण,

निज का जो व्यक्तित्व, सदा से ही  है दर्पण l

चन्चल  और चपलता  को  उन्माद  कहा है

सहज सरलता  प्रेम रहा  उसका  आकर्षण l

Thursday, 21 August 2025

 

सघन वृक्ष ही सदा उखड़ते, वेत सलामत सदा  रही  है,

सहज नम्रता और समर्पण, कारण बनता बात सही है l

पर्वत को भी चीर सकी  है, सरिता अपनी राह बनाती,

अहंकार को तजो,सफलता मिलती है, यह बात कही है l

Wednesday, 20 August 2025

 

सृष्टि क्रम से जो जुड़ा, वह है पुरातन,

साध्य से  कैसे जुड़े, हों नित्य साधन l

धर्म मत  बाँटो, नया  है  या  पुराना,

नित्य नूतन सत्य  ही  होता सनातन l

Tuesday, 19 August 2025

 

श्रमित समय का अंशदान जिनका है जीवन,

सहभागी  हो कष्टों में, जो  हैं पीड़ित जन l

सब  में  हो  सदभाव, साधना ऐसी करिये,

तभी आपको  हो  सकता  है, उसका दर्शन l

Monday, 18 August 2025

 

सेवा भाव समर्पण  ही बस,मानव की  पहिचान है,

जिसको है सन्तोष हृदय में, सच में वह  धनवान है l

यों तो मरते और जन्मते, जो भी आता यहाँ धरा पर,

जो उपकार  सहज  ही  करता, पाता वह  सम्मान है l

Sunday, 17 August 2025

 

आयु होती  क्षीण, यदि निन्दा  करें  विद्वान् की,

तप नष्ट होता जायगा,यदि मान्यता अभिमान की l

झूठ  बोला  तो  समझ  लो, नष्ट होगा यज्ञ फल,

दूसरों से यदि  कही, महिमा  कहाँ  फिर  दान की l

Saturday, 16 August 2025

 

झूला झूल रहे गिरिधारी, शोभा अद्भुत न्यारी |

                                             मोर मुकुट  माथे  पे  शोभित,

                                              छवि देखी नहिं कभी कदाचित |

                                  कन्ठ  हार  बलहारी |

                              झूला झूल रहे गिरिधारी |

                                            श्याम वर्ण, नैना हैं चन्चल,

                                           दमक रहे कानों  में कुण्डल |

                               वे  पीत  वस्त्र  धारी |

                               झूला झूल रहे गिरिधारी |

                                            गोप,गोपियाँ नाचें गावें,

                                              देख देख कें वे मुस्कावें |

                               झूम  रहे  नर , नारी |

                            झूला झूल रहे गिरिधारी |

                                          अंगराग  संग  माथे  चन्दन,

                                       यहाँ प्रभुल्लित सबके तन,मन |

                                     ऐसे हैं  उपकारी |

                            झूला झूल रहे गिरिधारी |

                                        जिन डारन  पे झूला शोभित,

                                        सुख पा रय जो भये समर्पित |

                                झूलें   बारी    बारी |

                           झूला झूल रहे गिरिधारी |

                                       राधा कहती, बैठें  संग में,

                                     हम भी डूबें उनके रंग में |बैठन की तैयारी | झूला ---