Wednesday, 21 September 2022

मुक्तक

 

बुधि विवेकयुत शिक्षा ही होती संस्कृति है,

निज कर्मो की प्रति-विम्व होती आकृति है l

यों तो आवागमन सत्य है इस धरती पर ,

मरती रहती देह, अमर ही होती कृति है l

 

सेवा भाव समर्पण  ही बस, मानव की पहिचान है,

जिसको है सन्तोष हृदय में, सच में वह धनवान है l

यों तो मरते,और जन्मते,जो भी आया यहाँ धरा पर,

करता  जो उपकार सदा  ही, पाता  वह सम्मान है l

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