बुधि विवेकयुत
शिक्षा ही होती संस्कृति है,
निज
कर्मो की प्रति-विम्व होती आकृति है l
यों तो
आवागमन सत्य है इस धरती पर ,
मरती
रहती देह, अमर ही होती कृति है l
सेवा भाव
समर्पण ही बस, मानव की पहिचान है,
जिसको है
सन्तोष हृदय में, सच में वह धनवान है l
यों तो
मरते,और जन्मते,जो भी आया यहाँ धरा पर,
करता जो उपकार सदा
ही, पाता वह सम्मान है l
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