Thursday, 22 September 2022

बुन्देली चोक डीया

 

गोरी  पेरें  हैं  करधोनी,  नीची  करें   बरौनी,

घूंघट भीतर माथे ऊपर, टिकली  लगी  तिकोनी.

धर पनियां की खेप निकर गईं, चुनरी ओढ़ सलोनी,

पलक खुले रय,ओझल हो गइं,कर गईं आँख मिचोनी,

कजरा कोर  दिखा गईं विधना, होंन  चात  अनहोनी.

डा हरिमोहन गुप्त 

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