भर नैनों में नीर l
कर्म करो, फल उस पर छोड़ो,
विषय वासना से मुँह मोड़ो,
बदले तब तकदीर l
तुम जोड़ो सच से ही नाता,
जो मन से प्रभु के गुण गाता,
माथे लगे अबीर l
कोन थाह पा सकता उसकी,
करता वह परवाह सभी की,
सागर सा गम्भीर l
सबका दाता, सबका प्यारा,
सत्य सदा शिव,सबसे न्यारा,
उसको सबकी पीर l
जिसने गाया, उसने पाया,
उसने भी सबको अपनाया,.
तुलसी, सूर, कबीर l
उसका नाम जपेंगे हम सब,
फिर पीड़ा क्यों होगी जब तब,
मन में रख तू धीर l
प्रभु जी, हरते सबकी पीर
डा0 हरिमोहन गुप्त
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