*****
प्रेरणा
( नीति दोहे )
मानव की
पीड़ा हरें, वे ही पाते मान,
सेवा धर्म प्रधान है, तब बनती पहिचान l
पौरुष शक्ति समर्थ जो,क्षमा रहे यदि पास,
निर्धन हो पर दान दे ,ईश्वर का वह ख़ास l
सदा ऐक रस
ही रहे, भय हो फिर प्यार,
हानि,लाभ,जीवन,मरण,
सब उसके अनुसार l
विषय भोग को छोड़ दो, क्यों करते उपभोग,
इसे जानते हैं सभी, किसे दोष दें लोग |
डा0 हरिमोहन
गुप्त
No comments:
Post a Comment