दीनों की पीड़ा हरें, उससे हो पहिचान,
सुख समृद्धि ही बढ़ सके, उसमें है कल्याण l
कान दूसरा क्यों सुने, आँख बने अनजान,
निर्बल, निर्धन न रहे, यही सुकृत का दान l
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