घर पर हम बैठें रहें, रोयें पाँचों साल,
पछताना हम को पड़े, तोड़ें हम यह जाल.
राजनीति अब दे रही, केवल यह संदेश,
समय देख कर आप भी, बदलें अपना वेश |
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