बुद्धि,
विवेकी पुरुषों की बातों को सुनता,
संग कभी
पौराणिक आख्यानों को चुनता |
वही सामने
आप सभी के मैं रखता हूँ,
साथ
कल्पना के ताने बानों को चुनता |
छान बीन
कर तब निचोड़कर, कुछ मैं पाता ,
माँ वाणी
की कृपा मान, उसके गुण गाता,
शायद कुछ
कल्याण हो सके
मेरे द्वारा,
गुरु,
देवों संग विज्ञजनों को शीश झुकाता |
सदाचार संग नम्रता, क्षमा, दया का भाव,
सत्य, शील ही प्रेम है, रहता नहीं अभाव |
ज्ञान सहज पायें सभी, रहें अगर निश्चिन्त,
अहंकार बस छोड़ दें, झूठे सभी लगाव |
काम, क्रोध या घृणा भाव ही,संयम रहित विचार,
चिन्तित मन रहता सदा, पाता कष्ट अपार |
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