चन्दन हर पोधा महकाये जो समीप है,
जग को जो आलोकित कर दे वही दीप है l
पत्थर चोट सहे, पर फल दें वृक्ष यहाँ पर,
पानी
पी कर मोती उगले वही सीप है l
फल देतें
हैं सदा सभी को, वृक्ष नहीं कुछ
खाते,
धरती
को सिंचित करते ही,बादल फिर उड़ जाते l
प्यास बुझाती प्यासे की ही, सरिता लब जल
पीती,
पर
उपकारी जो होते
हैं, धन्य वही हो पाते l
इर्ष्या मन में जगे, समझ लो यही डाह है,
पाने की इच्छा हो मन में, यही चाह है l
प्रगति पन्थ पर बढने की जिज्ञासा मन में,
सत्य
यही है, “जहाँ चाह है वही राह है”l
मिले सफलता जीवन में तुम हार न मानो,
छू सकते आकाश, स्वयम को तो पहिचानो l
जो
करते अभ्यास नितन्तर, आगे बढ़ते,
तुम
में है सामर्थ, मन्त्र यह मेरा मानो l
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