सबको खुश करने में मैंने, जाने कितने कष्ट सहे हैं,
कोई कुछ भी कहे वस्तुत:, यह तो मेरे फर्ज रहे हैं |
क्या कह दूँ मैं आज चलन को,मतलब के सब यार बने हैं,
मौका अपना देख समझ कर, धारा के संग सभी बहे हैं |
No comments:
Post a Comment