जीवन और कर्म को मानो, आदि श्रोत भगवान,
हृदय कमल में वास उसीका, वह जीवन का प्राण |
सतचित ही आनन्द रूप है, आत्म अंश है मात्र,
जप,तप,पूजन,भजन,लगन से, बनती है पहिचान |
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