मन को तुम एकाग्र करो तो, तभी शान्ति का श्रोत बहेगा,
सुन्दर,स्वस्थ विचार रहें मन, सेवा व्रत भी साथ रहेगा |
शान्ति सदा भीतर है जैसे, कस्तूरी मृग नाभि बसी है,
उससे नाता जो जोड़ेगा, सदा सत्य का मार्ग गहेगा |
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