यही सत्य है, लालच संग्रह को उपजाता,
और स्वार्थ फिर चिनगारी बन उसे जलाता l
संग्रह तब फिर कहाँ रोक पाया लालच को,
यह मन भी बेकाबू हो कर उसे बढाता l
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