स्वयम पीड़ित हो उठे मन, बस दूसरे के दर्द में,
सौप दें कम्बल, दुशाला, कोई अगर हो सर्द मे l
कर सको उपकार, तो तुमको ख़ुशी मिल जायगी,
हो सदा ही भाव सेवा, यह भावना हो मर्द में l
No comments:
Post a Comment