काम, क्रोध या घृणा भाव ही, संयम रहित विचार,
चिंता में गिरता है प्राणी, पाता कष्ट अपार |
पहिले आत्म निरीक्षण कर लो, दुश्चिन्तायें छोड़,
करती हमको सद प्रवृत्ति ही, भवसागर से पार |
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