हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा, यही बात
है शास्वत,
दृष्टिकोंण
बदलें हम अपना, इस में है अपना हित |
गुण अन्वेषण हो
स्वभाव में, हम समाज में जाएँ,
घृणा, द्वेष, दुर्भाव त्याग
कर, खुद को करें समर्पित |
हमको क्या करना
है जग में, लक्ष्य बनाओ निश्चित,
जीना,मरना तो जीवन क्रम,भटके, हुये पराजित |
आये हैं किस हेतु
धरा पर, इस पर करिये मंथन |
व्यर्थ जायगा यह
जीवन ही, फिर क्या मिले कदाचित |
चढ्ना है पहाड़
के ऊपर, झुक
कर चढना होगा,
अगर चाहते
मन्जिल पाना, रुक कर चलना होगा |
अकड दिखा कर जो
भी चलता, ठोकर खा गिर जाता,
लक्ष्य प्राप्ति
हित,हो प्रयास रत, गिर कर उठाना
होगा |
लक्ष्य सामने रखने वाले, कभी नहीं रुकते हैं
जो श्रम के आदि हो जाते , कभी नहीं थकते हैं
धीरे धीरे चलो , सामने लक्ष्य बनाओ निश्चित
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