Friday, 16 August 2024

 

हम सुधरेंगे, जग  सुधरेगा, यही  बात  है  शास्वत,

दृष्टिकोंण बदलें हम अपना, इस में है अपना  हित |

गुण अन्वेषण हो स्वभाव में, हम समाज में  जाएँ,

घृणा, द्वेष, दुर्भाव त्याग कर, खुद को करें समर्पित |

 

हमको क्या करना है जग में, लक्ष्य बनाओ निश्चित,

जीना,मरना तो  जीवन क्रम,भटके, हुये  पराजित |

आये हैं  किस हेतु  धरा पर, इस पर  करिये मंथन |

व्यर्थ जायगा यह जीवन ही, फिर क्या मिले कदाचित |

 

चढ्ना है  पहाड़  के ऊपर, झुक  कर चढना होगा,

अगर चाहते मन्जिल पाना, रुक कर  चलना होगा |

अकड दिखा कर जो भी चलता, ठोकर खा गिर जाता,

लक्ष्य प्राप्ति हित,हो प्रयास रत, गिर कर उठाना होगा |

 

लक्ष्य  सामने  रखने  वाले, कभी  नहीं  रुकते हैं

जो श्रम के आदि हो जाते , कभी नहीं थकते हैं

धीरे धीरे चलो , सामने लक्ष्य  बनाओ निश्चित

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