दया,धर्म अरु सत्य संग, साहस जिसके पास,
जिसमें है पुरुशार्थ तो, वह पण्डित यह आस l
रात जागते ही रहें, रोगी, कामी, चोर,
केवल कायर,दीन ही, सदा मचाते शोर l
लोभ और निर्लज्यता, गर्व संग है क्रोध,
मानवता की राह
में, वे बनते अवरोध l
स्वयम
वृति से जीविका, हों निरोग यह ठान,
ऋणी न
होना किसी के, ये सुख मान प्रधान l
बुधि विवेक युत मित्र हो,जिसे शास्त्र का ज्ञान,
संकट
में निस्वार्थ जो, मित्र उसी को मान l
जो
कृतज्ञ,संयम प्रमुख, हो संकल्प महान,
जिसकी जो सामर्थ हो. उतना करिये दान l
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़ अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम
धन संग्रह नहिं धर्म से, उसका करिये त्याग,
यथा सर्प
की केचुली, नहीं लगेगा
दाग l
धर्म पन्थ में बाँट कर, हमें किया बर्वाद,
ऐक नहीं
होने दिया, उपजा वादविवाद l
वे दोनों तो ऐक हैं, क्या रहीम क्या राम,
हम
में ही दुर्बुद्धि है, इसीलिये कुहराम l
मिटटी की यह देह है, सब में ज्योति समान,
क्या हिन्दू, क्या मुसलमा, क्यों होते
हैरान l
मद स्वभाव,कटु वचन हों, करें मर्म आघात,
पीड़ा पहुचे मनुज को, मिले सदा व्याघात l
दया,
धर्म, निर्भीकता, अगर आपके पास,
सारे अवगुण सिमट कर, बन जाते हैं दास l
जो भी चाहे शान्ति सुख,या चाहे आनन्द,
क्षमा,शील संग दया हो, पाओ परमानन्द l
जो चाहो
ऐकाग्रता, इच्छा शक्ति
प्रधान,
मन प्रसन्न यदि आपका, सुख दुख ऐक समान l
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