Sunday, 5 February 2023

दया,धर्म अरु सत्य संग, साहस जिसके पास,

जिसमें है पुरुशार्थ तो, वह पण्डित यह आस l

      रात जागते ही रहें, रोगी, कामी, चोर,

      केवल कायर,दीन ही, सदा मचाते शोर l

लोभ और निर्लज्यता, गर्व संग है क्रोध,

मानवता की राह  में, वे बनते अवरोध l    

 स्वयम वृति से जीविका, हों निरोग यह ठान,

 ऋणी न होना किसी के, ये सुख मान प्रधान l

बुधि विवेक युत मित्र हो,जिसे शास्त्र का ज्ञान,

संकट  में  निस्वार्थ जो, मित्र उसी  को मान l

    जो कृतज्ञ,संयम प्रमुख, हो संकल्प महान,

    जिसकी जो सामर्थ हो. उतना करिये दान l

धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,

छोड़ अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l

   मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,

   स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम

धन संग्रह नहिं धर्म से, उसका करिये त्याग,

यथा सर्प  की  केचुली, नहीं  लगेगा  दाग l

  धर्म पन्थ में बाँट कर, हमें किया बर्वाद,

  ऐक नहीं  होने  दिया, उपजा वादविवाद l

वे दोनों तो ऐक हैं, क्या रहीम क्या राम,

हम  में  ही  दुर्बुद्धि है, इसीलिये कुहराम l

   मिटटी की यह देह है, सब में ज्योति समान,

  क्या हिन्दू, क्या मुसलमा, क्यों  होते  हैरान l 

मद स्वभाव,कटु वचन हों, करें मर्म आघात,

पीड़ा पहुचे मनुज  को, मिले सदा व्याघात l

   दया, धर्म, निर्भीकता, अगर  आपके पास,

  सारे अवगुण सिमट कर, बन जाते हैं दास l

जो भी चाहे शान्ति सुख,या चाहे आनन्द,

क्षमा,शील संग दया हो, पाओ परमानन्द l

 

 जो  चाहो   ऐकाग्रता,  इच्छा  शक्ति  प्रधान,

मन प्रसन्न यदि आपका, सुख दुख ऐक समान l 

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