कवि ही ऐसा प्राणी है जो, गागर में सागर को भरता
केवल वाणी के ही बल पर, सम्मोहित सारा जग
करता,
सीधी, सच्ची, बातें कह कर, मर्म स्थल को वह छू लेता
आकर्षित हो जाते जन जन, भावों में भरती है दृढ़ता l
पैर जब
कभी चादर से बाहर को आते हैं,
उसूलों से बड़े
जब ख्बाव हो जाते हैं |
परेशानी का
अनुभव तो देर से होता.
दुखित मन
आपका,स्वयं से आप कतराता |
बल पौरुष
के कारण जग में, नर ने माना श्रेष्ठ कर्म है,
धर्म भीरु
होने के
कारण, नारी कहती श्रेष्ठ धर्म है |
नहीं
कल्पना है यह कोरी, मानो तो विशवास अटल
है,
कोई
जान न पाया उसको, इसीलिए तो श्रेष्ठ मर्म है |
समझ है,
समस्या की तह तक जाने की,
शक्ति है,
समझने और
समझाने की |
बहकाने से
सदा सावधान रहना ,
कभी कोशिश
न करना आजमाने की |
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