करते यदि हरि स्मरण, मिल जाता मनमीत,
अब पछताना व्यर्थ है, जुड़ी न उससे प्रीति l
करते करते लोभ को, निकल जांयगे प्राण,
पछताओगे तुम बहुत, दिया न कुछ भी दान l
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