करते करते लोभ
को, निकल जांयगे प्राण,
पछताओगे तुम बहुत, दिया न कुछ भी दान l
बनी कसोटी प्रेम की, उसमें हो अनुराग,
मिल
सकता है वह अभी, प्राणी अब भी जाग l
कहते कहते थक गये, जुड़ा नहीं
संयोग,
उसको पाने के लिए, पीछे फिरते लोग l
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