आबरू इसमें न खींचे फिर कोई चोटी,
भाग्य है जो जी सकूँ बस जिन्दगी छोटी.
पाप परिभाषित करूँ सामर्थ के बाहर,
पुण्य है जो मिल सके दो वक्त की रोटी.
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