Thursday, 23 March 2023

 

आबरू इसमें    खींचे फिर कोई चोटी,

भाग्य है जो जी सकूँ बस जिन्दगी छोटी.

पाप परिभाषित  करूँ  सामर्थ  के बाहर,

पुण्य है जो मिल सके दो वक्त की रोटी.

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