जो दिल
में था, कागज पर उतारा कवि ने,
मिटे
हये हर
नक्श को उभारा कवि ने.
इस
संसार को श्री राम
ने सँवारा पर,
इस धरा पर
श्री राम को सँवारा कवि ने.
वही लेखनी
धन्य हो सकी, सार तत्व जिसने दे डाला,
स्वाभिमान
कवि का जिन्दा है, उसने अपने व्रत को पाला |
सजग देखता
और जगाता, वह ही कुछ कह पाता जग से,
बंद कपाट
किये बैठे जो, उनका
भी खुल जाता ताला |
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