लोभ और निर्लज्यता, गर्व संग है क्रोध,
मानवता की राह में, वे बनते अवरोध l
स्वयम वृति से जीविका, हों निरोग यह ठान,
ऋणी न होना किसी के, ये सुख मान प्रधान l
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