धन संग्रह नहिं धर्म से, उसका करिये त्याग,
यथा सर्प की केचुली, नहीं लगेगा दाग l
धर्म पन्थ में बाँट कर, हमें किया बर्वाद,
ऐक नहीं होने दिया, उपजा वादविवाद l
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