दिवा स्वप्न वर्जित सदा, उसके हित है रैन,
दिवस बना है कार्य हित, पाओ सुख संग चैन l
जो जीते अपने लिये, क्यों कोई दे ध्यान,
औरों के हित जो जिये, दुनियाँ रखती मान l
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