आशा फलती उन्हीं की, जिनको है सन्तोष,
जो प्रयासरत ही रहें, भरते हैं वे कोष l
मानव की पीड़ा हरें, वे ही पाते मान,
सेवा धर्म प्रधान है, तब बनती पहिचान l
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