विश्व बन्धु की रहे भावना, सत्कर्मो का पालन,
बिना स्वार्थ के निर्मल मन से, हो परमार्थ सुहावन |
एक एक से ग्यारह होते, तब समाज बनता है,
उसके प्रति उत्तरदायी हम, सेवा व्रत हो पावन |
No comments:
Post a Comment