हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा, यही बात है शास्वत,
दृष्टिकोंण बदलें हम अपना, इस में है अपना हित |
गुण अन्वेषण हो स्वभाव में, हम समाज में जाएँ,
घृणा, द्वेष, दुर्भाव त्याग कर, खुद को करें समर्पित |
No comments:
Post a Comment