जो चाहो
ऐकाग्रता, इच्छा शक्ति
प्रधान,
मन प्रसन्न यदि आपका, सुख दुख ऐक समान l
पर निन्दा
से जो बचा, रक्खा जिसने मौन,
तन मन जिसका शुद्ध है, उससे बढ़ कर कौन l
चोरी,असत
विचार को, सभी मानते पाप,
सत्य आचरण श्रेष्ठ है, नहीं रहे संताप l
पाप पुण्य के गणित को, समझ सका है कौन,
मन चाही
है व्यवस्था, शास्त्र हुये हैं मौन l
पंथों ने बाँटा हमें, द्वैत और अद्वैत,
ईश्वर सत्ता ऐक है, प्राणी अब तू चेत l
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