जिह्वा सुख को त्यागिये, कम ही चखिए नोंन,
रोटी
में सन्तोष हो,
आधी हो या
पोंन l
आधी रोटी
खाइये, रहे इरादा नेक,
तो पूरी तुम खावगे, आडम्बर तो फेक l
तड़क भड़क के दौर में, केवल झूठी शान,
है दुकान में भव्यता, पर फीके पकवान l
कुछ बातें हैं काम की, इनको करिये रोज,
उसका फल फिर देखिये, आप मनाएं मौज.
स्वच्छ
वस्त्र पहिनो सदा, आसन भी हो स्वच्छ,
बस सुगन्ध
हो पास में, स्वच्छ सदा हो कक्ष.
No comments:
Post a Comment