Tuesday, 13 December 2022

  कल तक सबमें प्रेम  था, आदर  था सदभाव,

 अलग अलग अब हो गये, बदले सभी स्वभाव l

आँगन में दीवाल हो, सभी चाहते आज,

अपने अपने रास्ते, अपने अपने काज l

      तार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,

      ऐसे घर  भी कलह से, हो  जाता बेजार l

मात, पिता को बाँटते, कैसे  हो निर्वाह,

कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह l       

 बंटबारा ऐसा किया, हुई परिस्थिति दास,

 माता रक्खें आप ही, पिता  हमारे पास l


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