कल तक सबमें प्रेम था, आदर था सदभाव,
अलग अलग
अब हो गये, बदले सभी स्वभाव l
आँगन में दीवाल हो, सभी चाहते आज,
अपने अपने रास्ते, अपने अपने काज l
तार
तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
ऐसे घर
भी कलह से, हो जाता बेजार l
मात, पिता को बाँटते, कैसे हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह l
बंटबारा
ऐसा किया, हुई परिस्थिति दास,
माता
रक्खें आप ही, पिता हमारे पास l
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