Wednesday, 21 December 2022

दोष दूसरों  के  मत  देखो, झाँको  अपने  अन्दर,

मिथ्या अंहकार  बढ़  जाता,  क्रोध, घृणा आते घर |

देखो तुम  अपने  दोषों को, स्वयं  सुधर  जाओगे,

सामजिक  अपराधी  कोई,  दण्ड दिलाओ  जी भर |

 

 

जब विपत्ति आती है शिर पर, मन में चिंता, शोक, निराशा,

जब सम्पति आती है घर में, ईर्ष्या, द्वेष, मान की आशा |

तृष्णा बढती  ही  जाती  है, संग्रह को ब्याकुल होता मन,

सुख मिलना दूभर हो  जाता, धूमिल होती  है  अभिलाषा |

 

हम सुधरेंगे, जग  सुधरेगा, यही  बात  है  शास्वत,

दृष्टिकोंण बदलें हम अपना, इस में है अपना  हित |

गुण अन्वेषण हो स्वभाव में, हम समाज में  जाएँ,

घृणा, द्वेष, दुर्भाव त्याग कर, खुद को करें समर्पित |

 

हमको क्या करना है जग में, लक्ष्य बनाओ निश्चित,

जीना, मरना तो  जीवन क्रम, भटके, हुये  पराजित |

       आये हैं  किस हेतु  धरा पर, इस पर  करिये मंथन | 

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