भव
तारक हे राम तुम, तारो मैं हूँ दास,
मुझे शरण
में लीजिये, चरणों में हो वास |
सदा दीन
पर नेह है, राम तुम्हीं से आस,
दीन
बन्धु तुम जगत के, ऐसा है विश्वास |
अनुपम छवि है कृष्ण की, कोई नहीं विरोध,
लो वंशी संग धनुष भी, केवल यह अनुरोध l
मोहक छवि है कृष्ण की, मन में है साकार,
धनुष,वाण कर में गहो, तो होगा उपकार |
सुन अभिषेक प्रसन्न नहिं,सुन वनवास न ग्लान,
ऐसी ही
मति दो मुझे, राघव राम सुजान |
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