स्वार्थ भावना यदि मन में तो, वह ख़ास नहीं
बनता,
छल- छन्द रहा यदि मन में तो, विश्वास नहीं
पलता |
कर्मठ, सत्यव्रती का जग में, नाम लिखा
जाता है,
अभिमानी जन को इस जग में, सम्मान नहीं
मिलता |
केवल तन ही नहीं आपका मन पवित्र हो,
आत्म नियंत्रण, परोपकार उत्तम चरित्र हो,
सुख के साथी नहीं दुःख में साथ निभायें
बस जिनके आचरण श्रेष्ठ हों वही मित्र हो
जग प्रकाशित है सदा आदित्य से,
हम प्रगति करते सदा सानिध्य से,
कोई माने, या न माने सत्य है,
देश जाग्रत है सदा साहित्य से l
काव्य अलंकृत है यदि कोई, नहीं जरूरत
अलंकार की,
सुन्दरता संग मोहक छवि हो, नहीं जरूरत
कंठहार की |
प्राणी
का गुण कर्म सदा प्रतिबिम्ब रहा
है जग में,
सरल सौम्यता,सम्यक वाणी, नहीं जरूरत
अहंकार की |
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