आज का पावन दिन दो महा पुरुषो को समर्पित-
एक राष्ट्र पिता महात्मा गांधी, दूसरा पूर्व प्रधान
मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को-
एक प्रश्न जाग्रत था मन में,
मानव क्या जिन्दा रहता,
मर कर भी इस जग में ?
रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
लेकिन कुछ के वाणी के
स्वर,
गूँज रहे रग रग में।
मेरा कुछ ऐसा विचार है,
मानव के ही कर्म ओर गुण
जिन्दा रहते,
मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
मानवता जिन्दा रहती है।
जब तक हममें,
सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
धरा पर धर्म कहाये
विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
सुख समृद्धि शान्ति हित
जीवन,
सन्तत
ऐसी फसल उगाये।
हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
हरिजन को भी गले लगा कर,
कहें परस्पर भाई भाई।
ऐसे स्वस्थ विचार अगर
जीवित हैं मन में,
तो गाँन्धी जिन्दा हैं
मानो
हम सबके ही तन में।
इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
नहीं मरेंगे।
युग युग तक उनके चरणों
में ,
जाने कितने शीष
झुकेंगे।
- श्री लाल बहादुर शास्त्री
गांधी
के सच्चे अनुयायी,थे करुणा के सागर,
रहे
सत्य के सदा समर्थक,सबके प्रति था आदर \
गूँज
रहा है”जय जवान का जय किसान” का नारा,
भारत के प्रधान मंत्री थे ऐसे
लाल बहादुर |
- डॉ. हरिमोहन गुप्त
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