जीवन गारा व्यर्थ में, लिया न प्रभु का नाम,
पछताता
हूँ मैं स्वयम, बिगड़े
सारे काम l
ईश्वर बड़ा दयालु है, रक्षक है वह आप,
क्यों उससे मुख मोड़ते, करते पश्चाताप l
जिसकी जैसी भावना, वैसी मानो
यार,
जुड़ा
हुआ है भाव से, यह जीवन का सार l
किया न हरि का स्मरण, समय गया बेकार,
लोक
सुधर क्या पायगा, स्वयम गया मैं हार l
मन्द बुद्धि कम्बल सदृश ,सादा बुद्धि सुजाग,
बांस सरीखी जो फटे, होती बुद्धि
कुशाग्र.
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