भारत को माता माना है, प्राण निछावर की
ठानी है,
जान हथेली पर रखते हैं, हममें हमीद से
मानी हैं |
हम अनेक में एक रहे हैं, जीवन,मरण लगे
उत्सव सा,
भले कौम के कोई रहें हम, पर पहिले
हिन्दुस्तानी हैं |
अडिग हिमालय से हैं हम सब, सागर सी गहराई
है,
देश बड़ा
है, हम से बढ़ कर, ऐसी शिक्षा पाई है |
भारत में भी कभी स्वार्थवश, जयचंद यहाँ
पैदा होते,
प्राणों
की आहुति देते हैं,
हमीं चन्द्रवरदायी हैं |
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