Wednesday, 26 October 2022

 दीपक

दीपक तल में तम आश्रित कर,

जग  में उजयारे को बाँटो,

प्रेम और सदभाव ज्योति में,

घृणा, द्वैष को ही तो छांटो l

तिल तिल कर तुम जलते रहते,

किन्तु धरा को करो प्रकाशित,

बिना भेद  के पियो अँधेरा,

और  सदा  रहते  अनुशाषित l

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“तमसो मा ज्योर्तिमय” जग हो,

इसको ही तो गाते रहते,

बाधायें  हों  पार पन्थ  की,

इसको  ही  दुहराते रहते l

मूल भावना यह प्रकाश हो.

जैसे भी जग हो आलोकित l

क्या होता उत्सर्ग व्यर्थ,जब

सदा रहो तुम ही अनुपालित l

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साहस,

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