Saturday, 15 October 2022

 मैं क्या लिखता,राम लिखाता,वही स्वयम लिख जाता l

उर  में  वह  ही भाव जगाता, श्रेय मुझे मिल जाता l

   मैं  भजता  हूँ  राम नाम को, बस  उससे है  नाता,

  अगर अँधेरा  पाता  मग  में, वह  ही  राह दिखाता l

मेरा  जीवन राम भजन  में,  सच  मानो कट जाता,

क्या लेना इस लौकिक जग से,दुख में भी सुख पाता l

  सब आडम्बर छोड़ जगत के, मन  को  यह समझाता.

 जीवन धन्य  मानता  मैं  हूँ, बस  उसके  गुण गाता l

निराकार  है, निरालम्ब  है, वही  ऐक  है  ज्ञाता,

जितना उसे चलाना मुझको, उतने पग  धर पाता  l

 ऊँगली  मेरी  कर  में  पकड़े, वह  ही  भाग्य विधाता,

लोभ, मोह का  चक्कर छोड़ो, क्यों  मन को भरमाता ?

जीवन थोड़ा, पल दो पल का, क्यों कुभाव उपजाता ?

जो भी आश्रित उस पर रहता, नहीं कभी  दुख पाता l 

मुझको  को  तो  सन्तोष  यही  है, मेरा  उससे  नाता,

दान पुण्य  मैं  नहीं  जानता, मन  में  सुख  उपजाताl

अन्त समय में सच मानो तुम,सबका भाग्य विधाता,

भव सागर  में  नाव फंसी  तो, वह ही पार लगाता l 

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